आखिरकार ब्रिटेन 28 देशों के समूह यूरोपियन यूनियन संघ से बाहर हो ही गया। 43 साल बाद इस ऐतिहासिक जनमत संग्रह में ईयू से अलग होने के लिए 52% और विरोध में 48% लोगों ने मतदान किया। लंदन औऱ स्कॉटलैंड ने ईयू में रहने के पक्ष में मतदान किया। जबकि उत्तरी इंग्लैंड में लोगों ने इसके विपक्ष में वोट दिया। भारी बारिश के बावजूद लोगों ने बढ़-चढ़कर जनमत संग्रह में भाग लिया और अपना फैसला बहुत बेबाकी के साथ सामने रख दिया। इससे पहले साल 1975 में भी ब्रेक्जिट के मुद्दे पर जनमत संग्रह कराया गया था। तब ब्रिटेन के लोगों ने यूरोपियन संघ से अलग होने की मांग ठुकरा दी थी। लेकिन, इस बार फैसला इसके उलट आया।
इस नये फैसले से पूरी दुनिया भौंचक्की रह गई। अन्य देशों के साथ-साथ इसका भारत पर भी गंभीर असर पड़ेगा। इस नतीजे के सामने आते ही पाउंड 31 साल के सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया। इससे भारतीय शेयर बाजार को भी नुकसान पहुंचा और सेंसेक्स में 1004 अंकों की गिरावट दर्ज की गई। पाउंड की स्थिति कमजोर होने से डॉलर मजबूत होगा और इससे रुपये की कीमत गिरना निश्चित है। इसके साथ ही कच्चे तेल के दामों में भी वृद्धि होगी। पेट्रोल और डीजल महंगे हो जायेंगे। क्योंकि कच्चे तेल की खरीद डॉलर में की जाती है।
अगला नुकसान टाटा मोटर्स सहित उन 800 भारतीय कंपनियों को होगा जो ब्रिटेन में व्यवसाय कर रही है। यूके के ईयू से अलग हो जाने से इनका कारोबार प्रभावित होगा। ये कंपनियां वहां ओपन यूरोपियन मार्केट में बिजनेस करती हैं। ब्रिटेन के ईयू से अलग होने के खिलाफ अगर यूरोपीय देश एक हो गए तो इससे भारतीय व्यापारियों को बड़ा खामियाजा भुगतना होगा। अगर यूरोप के देशों ने ब्रिटेन के लिए अपने रास्ते बंद कर दिए तो भारतीय कंपनियों को यूरोप जाने के लिए नये रास्ते तलाश करने पड़ेंगे। इसके पहले यूरोप के एक देश से दूसरे देश में जाने के किसी तरह का वीजा या अन्य रुकावटों का सामना नहीं करना पड़ता था। लेकिन, अगर यूरोप ने अपनी नीति में तब्दीली की तो अलग-अलग देशों से अलग-अलग करार करने पड़ेंगे। इससे खर्च बढ़ने के अलावे नये-नये नियम-कानूनों का सामना भी करना पड़ेगा।
आईटी सेक्टर पर भी ब्रिटेन के इस फैसले का असर पड़ेगा। आईटी सेक्टर को इससे 108 बिलियन डॉलर का नुकसान होने की संभावना बताई जा रही है। अभी तक ब्रिटेन से भारतीय आईटी सेक्टर 6 से 18 फीसदी तक कमाई कर रही थी।
हालांकि, इस फैसले से कुछ अच्छी उम्मीदें भी जुड़ी हुई हैं। भारत यूके में निवेश करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है। जिन देशों से भारत द्विपक्षीय व्यापार करता है उसमें ब्रिटेन 12 वें नंबर पर आता है। ब्रिटेन उन 25 विदेशी देशों में 7 वें नंबर पर आता है जिससे भारत सामान कम लेता और भेजता ज्यादा है। इस फैसले से ब्रिटेन को कई चीजों के आयात के लिए भारत की जरुरत पड़ेगी और ये एक तरह से भारतीय बाजार के लिए बड़ा अवसर साबित होगा।
पर कुल मिलाकर यूरोपियन यूनियन संघ से ब्रिटेन का अलग होना भारत के लिए शुभ नहीं कहा जा सकता। समय रहते भारतीय सरकार ने अगर इस समस्या को सुलझाने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाये तो भारतीय अर्थव्यवस्था को इसके गंभीर परिणाम झेलने पड़ सकते हैं।
‘बोल बिहार’ के लिए प्रीति सिंह