15 जुलाई 1970 से कर्नाटक के मैसूर से प्रकाशित हो रहा संस्कृत अखबार ‘सुधर्मा’ आज अंग्रेजी से हार गया। अब ये अखबार बंद होने के कगार पर है। इसे पढ़ने वाले पाठक निरंतर घट रहे हैं। नतीजतन अखबार की बिक्री की दर बेहद कम हो गई। सरकार से भी कोई मदद नहीं मिल रही। हम सबकी उपेक्षा सहते-सहते अब चंद दिनों का मेहमान है ये अखबार।
‘सुधर्मा’ संस्कृत भाषा में निकलने वाला दुनिया का एकमात्र अखबार है। इस अखबार को संस्कृत के महान् विद्वान कलाले नांदुर वरदराज आयंगर ने शुरू किया था। इस अखबार को केरल, असम, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर और तमिलनाडु के पुस्तकालयों में रखा जाता है। इसके अधिकतर पाठक शिक्षण संस्थानों और धार्मिक संस्थानों से आते हैं। अखबार के कुछ पाठक अमेरिका और जापान के भी हैं।
एक पेज के इस अखबार में ज्यादातर योग, वेद, संस्कृति और राजनीति की खबरें होती हैं। सुधर्मा के ई-पेपर को डेढ़ लाख से ज्यादा लोग पढ़ते हैं। इनमें से अधिकतर जर्मनी, इंग्लैंड और इजरायल के हैं। पर अखबार का सर्कुलेशन अभी मात्र चार हजार है। इससे आयंगर के बेटे और अखबार के मौजूदा संपादक वी. संपत कुमार दुखी हैं। उन्होंने अखबार को जारी रखने के लिए सरकार से भी मदद मांगी। लेकिन, उन्हें अभी तक कोई मदद नहीं मिली है। वी. संपत कुमार ने अखबार के लिए आम लोगों से भी चंदा मांगा है।
अपनी संस्कृति के प्रति अत्यधिक उदासीनता और दूसरी सभ्यताओं के प्रति झुकाव ने आज संस्कृत को अपने ही देश में हाशिये पर ला दिया है। आधुनिक काल के माता-पिता अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाना अपनी शान समझते हैं। किसी मेहमान के आने पर वो बच्चों को ‘राईम्स’ सुनाने को तो कहते हैं। लेकिन, हिन्दी या संस्कृत की कविताओं को सुनाने कभी नहीं कहते। इसका एक बड़ा कारण सरकार का अपनी भाषा के प्रति उपेक्षापूर्ण नजरिया है। दुनिया के किसी भी देश में अपनी भाषा के प्रति इस कदर सौतेलापन नहीं बरता जाता। जैसा हमारे देश में संस्कृत और हिंदी के प्रति किया गया।
आज संस्कृत को विश्व स्तर पर साईंटिफिक और फोनेटिकली साउंड लैंग्वेज के रुप में मान्यता मिल रही है। संस्कृत ऐसी भाषा है जिसमें आकृति और ध्वनि का आपस में संबंध होता है। लंदन के कई बड़े कान्वेंट स्कूलों में बच्चों को द्वितीयक भाषा के रूप में संस्कृत सिखाया जाता है। अपनी सुस्पष्ट और छंदात्मक उच्चारण प्रणाली के चलते विदेशों में संस्कृत भाषा को ‘स्पीच थेरेपी टूल’ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। भाषा वैज्ञानिकों का कहना है कि संस्कृत शब्दों के उच्चारण से मस्तिष्क का सेरेब्रल कार्टेक्स सक्रिय होता है। इतना ही नहीं, संस्कृत लगभग सभी भारतीय भाषाओं और यूरोपीय भाषाओं की जननी है। इसके बाद भी हमारे देश में आज भी संस्कृत पुराणों की भाषा मानी जाती है।
भारत में कहने को कुल 13 संस्कृत विश्वविद्यालय हैं। कर्नाटक में ही 18 संस्कृत कॉलेज हैं। लेकिन फिर भी सुधर्मा की मदद करने वाला कोई नहीं है। अगर सरकार अभी भी इसकी सहायता को आगे नहीं आई तो वो दिन दूर नहीं जब संस्कृत के इस 46 साल पुराने अखबार के दफ्तर में सदा-सदा के लिए ताला लग जाये।
‘बोल बिहार’ के लिए प्रीति सिंह