तीन जून को राज्य सभा के लिए 30 उम्मीदवारों के निर्विरोध चुने जाने के बाद शेष 27 सीटों के लिए आज सात राज्यों में चुनाव हुए जिसमें भाजपा के 11, सपा के 7, कांग्रेस के 6, बसपा के 2 और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की। यूपी में तमाम आशंकाओं को दरकिनार करते हुए कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने जीत दर्ज की। उनकी वजह से कांग्रेस की निगाह यूपी पर टिकी हुई थी। भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी प्रीति महापात्रा के मैदान में आने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री कपिल सिंब्बल की लड़ाई वहाँ मुश्किल हो गई थी। पर मायावती के समर्थन से उन्होंने ये मुश्किल लड़ाई जीत ली।
सिब्बल के अलावे आज संसद के उच्च सदन पहुँचने वाले अन्य प्रमुख उम्मीदवार हैं – राजस्थान से केन्द्रीय मंत्री वैंकेया नायडू, यूपी से सपा के अमर सिंह और बेनी प्रसाद वर्मा तथा बसपा के सतीश चंद्र मिश्र, मध्य प्रदेश से भाजपा के एमजे अकबर, झारखंड से केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, हरियाणा से केन्द्रीय मंत्री बीरेन्द्र सिंह और निर्दलीय सुभाष चन्द्रा, कर्नाटक से केन्द्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण तथा कांग्रेस उम्मीदवार ऑस्कर फर्नांडीस और जयराम रमेश एवं उत्तराखंड से कांग्रेस के प्रदीप टम्टा।
यूपी से कांग्रेस के सिब्बल के अतिरिक्त सत्तारूढ़ सपा के सभी सात उम्मीदवार तथा बसपा के दो और भाजपा के एक उम्मीदवार ने जीत हासिल की। प्रीति महापात्रा को लेकर भाजपा को भले ही यहाँ मुँह की खानी पड़ी, पर हरियाणा और झारखंड में वो उलटफेर करने में कामयाब रही। हरियाणा में भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी व जी टीवी के संस्थापक सुभाष चन्द्रा ने जीत हासिल की। इन्होंने प्रसिद्ध अधिवक्ता तथा कांग्रेस और आईएनएलडी समर्थित उम्मीदवार आरके आनंद को हराया। उधर झारखंड में भाजपा ने दोनों सीटें जीत लीं। यहाँ भाजपा के पहले उम्मीदवार मुख्तार अब्बास नकवी तो आसानी से जीते ही, इसके दूसरे उम्मीदवार महेश पोद्दार ने भी जेएमएम के बसंत सोरेन को हरा दिया। जबकि बसंत सोरेन को कांग्रेस का समर्थन भी हासिल था।
इस बार के चुनाव में भाजपा ने राज्य सभा में अपनी ताकत बढ़ाने की हर सम्भव कोशिश की। बता दें कि ऊपरी सदन में भाजपा अल्पमत में है और अपनी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए उसके लिए जरूरी है कि वहाँ उसकी सीटें कांग्रेस से ज्यादा हों। यही कारण है कि भाजपा ने कुछ राज्यों में वैसे प्रत्याशियों को भी चुनाव-मैदान में उतारा था जिन्हें पार्टी की लाइन से अलग हटकर भी वोट मिल सके।
ये भी गौरतलब है कि इस चुनाव में भाजपा के छह मंत्रियों को राज्य सभा में वापसी करनी थी। 57 सीटों पर चुनाव सम्पन्न होने के बाद ना केवल इसके सभी मंत्रियों की वापसी हुई बल्कि पार्टी राज्य सभा में अपनी ताकत बढ़ाने में भी कामयाब हुई। लेकिन बावजूद इसके भाजपा अब भी राज्य सभा में सबसे बड़ी पार्टी नहीं है। हाँ, कांग्रेस से वो बहुत पीछे भी नहीं है। पर जब तक भाजपा राज्य सभा में निर्णायक स्थिति में नहीं होती है तब तक या तो उसके बड़े बिल वहाँ अटकते रहेंगे या फिर उसे ‘जुगाड़-तंत्र’ का सहारा लेते रहना होगा।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप