एक ऐसा गांव जहां पुरखों के श्राप की वजह से 200 सालों से नहीं दिया जाता कोई निमंत्रण। जी हां, बात चाहे काल्पनिक लगे या पौराणिक, है सौ फीसदी सही। वैशाली जिले का एक छोटा सा गांव। नाम हरपुर। बासुदेवपुर चंदेल हॉल्ट से आधा किलोमीटर दक्षिण स्थित ये गांव सालों पुराने श्राप को आज भी झेल रहा है। यहां के ग्रामीणों को आस-पास के 26 गांवों के चंदेल राजपूत 200 साल पुरानी प्रथा को कायम रखते हुए आज भी न्योता नहीं भेजते।
बासुदेवपुर गांव के 85 साल के बुजुर्ग रघुराज प्रसाद सिंह अतीत में झांकते हुए पिछली बातों को दुहराते हैं। ये बातें उन्होंने अपने दादा-परदादा के मुंह से सुनी थी और आज हमें बता रहे हैं। उन्हीं की जुबानी कहें तो आज से 200 साल पहले बुंदेलखंड के गढ़महौवा से मुगल आक्रमण से आक्रांत होकर तीन चंदेल राजपूत युवक इंद्रदेव, पाहदेव और जगतदेव, जो आपस में भाई थे, वैशाली पहुंचे।
इन तीनों में पहले भाई इंद्रदेव से 22 गांव राघोपुर और हाजीपुर के क्षेत्र में बसे हैं। दूसरे भाई पाहदेव गिद्धौर (मुंगेर के निकट) चले गए। उन्होंने वहां राज्य स्थापित किया और गिद्धौर नरेश के नाम से प्रख्यात हुए। तीसरे भाई जगतदेव उर्फ जगदीश सिंह ने वैशाली के चमरहरा गांव की स्थापना की।
इन जगदीश सिंह के सात पुत्र थे। उनमें से चार पुत्र चमरहरा में बस गए। पाँचवें बेटे बासुदेव सिंह दूसरे गांव में बस गए और उन्हीं के नाम पर कालांतर में उस गांव का नामकरण बासुदेवपुर चंदेल हुआ। उनके छठे बेटे इसी बासुदेवपुर चंदेल के सटे चुहरचक में बस गए। कहते हैं मुसलमानी सल्तनत में मालगुजारी नहीं देने की वजह से उन्हें मुसलमानों ने पानी पिला दिया। इस वजह से उन्होंने खुद को ‘धर्मभ्रष्ट’ मान विवाह नहीं किया और मोदी बाबा के आम के पेड़ के निकट धूनि रमा कर रहने लगे। बचे जगदीश बाबू के सातवें पुत्र, वे हरपुर गांव में बस गए।
दुनिया से ‘विरक्त’ हो चुके छठे भाई को छोड़ अलग-अलग रहने के बावजूद बाकी सभी भाईयों के आपस में मिलने का क्रम बना रहा। होता ये था कि चमरहरा से चारों भाई अक्सर बासुदेवपुर चंदेल जाकर अपने पाँचवें भाई से मिलते और उसके बाद पांचों भाई साथ होकर हरपुर गांव अपने सबसे छोटे भाई से मिलने जाते। उसके बाद सब अपने-अपने घरों को लौट जाते थे।
एक दिन की बात है कि पांचों भाई अपने छोटे भाई से मिलने हरपुर गांव पहुंचे। पर छोटे भाई, चाहे जिस भी कारण से, अपने बड़े भाईयों से मिलने नहीं निकले और नौकरानी कारी को उनके घर पर नहीं रहने की बात कहने को कहा। नौकरानी कारी ने बाहर आकर पांचों भाईयों से कहा कि “मालिक ने कहा है कि वो घर पर नहीं हैं।” अपने छोटे भाई की इस हरकत से सारे बड़े भाई बेहद दुखी और निराश हुए। गुस्से में उन्होंने एक साथ अपने छोटे भाई को श्राप देते हुए कहा कि “जाओ तुम एक घर का एक घर ही रह जाओगे।” उस दिन से हरपुर गांव से चंदेल राजपूतों के सारे संपर्क टूट गए।
आज भी हरपुर गांव के इस परिवार में एक पुत्र की वंशावली चल रही है। कई पीढ़ियां गुजर जाने के बाद भी आज तक उस परिवार में दूसरे पुत्र का जन्म नहीं हुआ। इतना ही नहीं, समाज से बहिष्कृत इस गांव के लोगों को आस-पास के चंदेल राजपूत किसी भी अवसर पर नहीं बुलाते। चाहे शादी हो या श्राद्ध कोई उस परिवार को न्योता नहीं देता और ना ही उनके किसी भी समारोह में चंदेल राजपूत शामिल होते हैं। पूर्वजों के इस श्राप को चंदेल राजपूत आज भी ‘कायम’ रखे हुए हैं।
‘बोल बिहार’ के लिए प्रीति सिंह