जीडी गोयनका पब्लिक स्कूल, लॉरेल पब्लिक स्कूल, उषा मार्टिन स्कूल, डीवाई पाटिल स्कूल, सिंधिया स्कूल.. पटना में एक से एक बड़े प्राईवेट स्कूलों का पदार्पण हो रहा है। कुछ खुल चुके हैं, कुछ खुलने वाले हैं। आखिर हो भी क्यों नहीं? शिक्षा के क्षेत्र में जितना पैसा है उतना कहीं और नहीं। स्कूल का बिजनेस कभी चौपट हो ही नहीं सकता। स्कूल से पास होकर निकलने वाले बच्चों का भविष्य चाहे जो हो इसके संचालकों का भविष्य हमेशा चकाचक रहेगा। इसकी पूरी गारंटी है।
लेकिन, यहां सवाल सिर्फ बड़े घरानों के स्कूलों का नहीं है। यहां उससे भी बड़ा सवाल स्कूल और एयरकंडीशंड स्कूल का है। एक ओर देश में सरकार सर्वशिक्षा अभियान चला रही है। सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही है। इन सरकारी स्कूलों में मुट्ठी भर भात और छिपकली गिरी दाल खिलाकर देश के नौनिहाल तैयार किए जा रहे हैं और दूसरी ओर इन फाईव स्टार, हाई-फाई स्कूलों के एसी कमरों में पिज्जा-बर्गर पर पले-बढ़े बच्चे बैठाकर पढ़ाये जा रहे हैं। आज शिक्षा पैसेवालों की जागीर बन गई है। कभी वो दौर भी था जब बड़े-बड़े राजघरानों के राजकुमार भी जंगल में जाकर एक आम व्यक्ति की तरह सुविधाविहीन जीवन बिताते थे और अपने गुरु से ज्ञान प्राप्त करते थे। लेकिन आज तो विद्या के ये आधुनिक मंदिर रुपयों के मोटे बंडल लेकर फुल्ली एयरकंडीशंड कमरों में बच्चों को ज्ञान बांटते हैं। जहां बच्चों को असली जीवन से कोसों दूर रखा जाता है। जहां सब कुछ अच्छा-अच्छा होता है। अब ऐसे में इन एयरकंडीशंड स्कूलों से निकले बच्चे कैसे जीवन के संघर्षों का सामना कर एक मजबूत देश की नींव रख पायेंगे, ये ख्याल ना उनके माता-पिता को आता है, ना ऐसे स्कूलों के संस्थापकों को और ना ही हमारी सरकार को।
ये आधुनिक एयरकंडीशंड स्कूल समाज में एक ऐसे विभेद की रेखा खींच रहे हैं जो अमीर-गरीब की खाई को और भी गहरी कर रही है। ये स्कूल समाज के निचले और मध्यमवर्ग के बच्चों के मन में हीन भावना भर रहे हैं। बच्चों के बीच दूरियां बढ़ा रहे हैं। उनके मन में एक-दूसरे के लिए अविश्वास और ईर्ष्या का भाव जगा रहे हैं। समाज में वैमनस्य को बढ़ावा दे रहे हैं। बावजूद इसके इस ओर ना तो हमारे शिक्षा मंत्री का ध्यान जा रहा है और ना ही गला फाड़-फाड़कर सामाजिक समानता की बात करने वाले राजनेताओं का। ऐसे में सरकार का सर्वशिक्षा का नारा कितना खोखला है इसे बहुत आसानी से समझा जा सकता है।
किसी भी देश में तरक्की तब तक नहीं होती जब तक वहां के नागरिकों में एकता नहीं होती और आपसी एकता के लिए एक जैसी सोच, एक जैसा परिवेश उपलब्ध करवाना सरकार का कर्तव्य होता है। बचपन के वो दिन जब बच्चे सबसे पवित्र, सबसे मासूम होते हैं उस दौर में उनके कोमल मन में एक-दूसरे के लिए शंका पैदा करना किसी शुभ समाज का लक्षण कतई नहीं होता। समय शेष रहते अगर सरकार और धनाढ़्य लोगों ने इस तथ्य पर गौर नहीं किया तो आने वाले वक्त में समाज पर इसका बेहद बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
‘बोल बिहार’ के लिए प्रीति सिंह