असम, बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में चुनावों के बाद अब बेसब्री के साथ नतीजों की प्रतीक्षा की जा रही है। मई की गर्मी जितना तन को झुलसा रही है, नतीजों की प्रतीक्षा उतना ही राजनेताओं के चित्त को उद्वेलित कर रही है। इंतजार कितना तड़पाता है ये तो प्रतीक्षारत व्यक्ति ही बेहतर जानता है।
चुनावों के संपन्न होते ही कयास लगने भी शुरू हो गए हैं। एग्जिट पोल के नतीजों के अनुसार बीजेपी को असम में बड़ा फायदा हो रहा है तो तमिलनाडु में सत्ता में फिर से द्रमुक की वापसी होती दिख रही है। लगता है करुणानिधि की राजनीतिक प्यास 93 साल की उम्र में पांच साल बाद एक बार फिर बुझने जा रही है। पश्चिम बंगाल में दीदी के साम्राज्य को कोई खतरा नजर नहीं आ रहा। ना तो कांग्रेस और लेफ्ट की जुगलबंदी ना ही मोदी सरकार की ‘लोकप्रियता’ ममता दीदी के किले को हिला पा रही है। वहीं केरल और असम में कांग्रेस की खटिया खड़ी होती दिख रही है। केरल में लेफ्टिस्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट सत्ता के दरवाजे पर दस्तक दे रही है तो असम में पहली बार भगवा रंग छाया है। उधर पुडुचेरी में डीएमके गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलता दिख रहा है।
बहरहाल, असम में पहली बार बीजेपी की जीत ना केवल इस राज्य बल्कि पूरे उत्तर-पूर्व में पार्टी के लिए संजीवनी का काम करेगी। असम में अगर बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही तो कुल 10 राज्यों में सत्ता उसके हाथ में होगी। साथ ही दिल्ली-बिहार की हार के बाद असम की जीत भाजपा की चोट पर मरहम रखने का काम भी करेगी। पर जी-जान एक कर देने के बावजूद एग्जिट पोल के अनुसार बंगाल में बीजेपी को महज 1 से 5 सीटें मिलने का अनुमान प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के लिए चिन्ता का सबब है। तमाम कोशिशों के बावजूद केरल में भी बीजेपी एक बार फिर अपनी पकड़ मजबूत करने से चूकती दिख रही है।
कांग्रेस की बात करें तो असम में उसके 15 साल के राज का अन्त होना पार्टी आलाकमान के लिए बड़ा सबक है। खासकर पार्टी उपाध्याक्ष राहुल गांधी के लिए। असम के साथ-साथ बाकी राज्यों से भी कांग्रेस के लिए उत्साह की कोई ख़बर नहीं है। एक वक्त सत्ता के शिखर पर रही कांग्रेस आज हर राज्य से लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। ऐसे में वो फिर से वापसी कैसे करेगी ये सोचना पार्टी और उनके शीर्ष नेताओं के लिए निहायत जरूरी है।
इस बार के एग्जिट पोल और पिछले साल हुए कुछ राज्यों के चुनावों में क्षेत्रीय पार्टियों का बढ़ता दबदबा साफ देखा जा सकता है। दोनों राष्ट्रीय दलों – कांग्रेस और भाजपा – के लिए ये स्पष्ट तौर पर खतरे की घंटी है क्योंकि अगले साल इन दोनों दलों को यूपी और पंजाब की बड़ी ‘अग्निपरीक्षा’ से गुजरना है। देखा जाय तो इस परिस्थिति में थर्ड फ्रंट की सम्भावनाओं को बल मिलने की पूरी गुंजाइश दिखती है। बहरहाल, ये सिर्फ एग्जिट पोल के नतीजे हैं। मतदाताओं का असली मूड तो ईवीएम खुलने के बाद ही पता चलेगा।
‘बोल बिहार’ के लिए प्रीति सिंह