शिक्षा विभाग की घोषणा के बाद उन बेचारे टेट उत्तीर्ण प्रतिभागियों की सोई किस्मत ने एक बार फिर दस्तक दी है जो अपनी सारी आशायें खो चुके थे। बिहार सरकार ने घोषणा की है कि पंचायत चुनाव के बाद टेट पास अभ्यर्थियों को अंतिम मौका दिया जायेगा। पंचायत चुनाव के बाद सरकार खाली पड़े 93 हजार शिक्षकों के पदों के लिए आखिरी बार भर्ती प्रक्रिया फिर से शुरू करेगी और इसी के साथ एक बार फिर से अभ्यर्थियों की भागदौड़ शुरू हो जायेगी।
ये वो अभ्यर्थी हैं जो दिसम्बर 2011 – जनवरी 2012 में आयोजित टेट परीक्षा में उतीर्ण हुए थे। आपको शायद याद हो कि टेट परीक्षा में बैठने के लिए देश के अलग-अलग जगहों पर रह रहे 25 लाख बिहारी अपने-अपने घरों की ओर लौटे थे। टेट अभ्यर्थियों की वजह से हवाई जहाज, ट्रेन, बस सभी की टिकटें मिलनी मुश्किल हो गई थीं। नीतीश सरकार ने इस परीक्षा में आयु सीमा की बाध्यता को घटा दिया था। जिसकी वजह से इस परीक्षा के आयोजन ने देश स्तर पर बिहारियों को अपनी ओर आकर्षित किया था और लोगों के टूटे मन को विश्वास दिलाया था कि बिहार में रोजगार के नये अवसर पैदा हो रहे हैं। नीतीश सरकार की कृपा से टेट पास वैसे अभ्यर्थियों की भी नौकरी करने की आस पूरी हो होने की उम्मीद जगी, जिन्होंने सरकारी सेवा की अपनी उम्र लगभग समाप्त ही समझ ली थी।
ये वो दौर था जब नीतीश कुमार की लोकप्रियता चरम पर थी और उन्हें ‘विकास पुरुष’ का तमगा हासिल हुआ था। इस परीक्षा के बहाने देश-विदेश में नीतीश कुमार की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से ऊपर चढ़ा था। सालों से पिछड़े राज्य के लोगों को उनसे बहुत सारी उम्मीदें थीं। उनकी सूनी आंखों को शिक्षक पात्रता परीक्षा ने नये सपने दिखाये थे। इसीलिए हर उम्र और वर्ग के लोगों ने जी-जान लगाकर इस परीक्षा की तैयारी की थी। परीक्षा में उत्तीर्ण कई हजार अभ्यर्थियों को नौकरी भी मिली। हालांकि इसमें किस कदर गंध मचाई गई, ये अलग एक बहस का मुद्दा है। बहरहाल, कुछ हजार को नौकरी मिलने के बाद बाकी बचे अभ्यर्थियों के लिए शिक्षक बनना मुंगेरी लाल के हसीन सपने की तरह ही बना रहा।
हर बार ऐसे अभ्यर्थियों के लिए नई-नई योजनायें लाई गईं। एक ब्लॉक से दूसरे ब्लॉक में नियुक्ति के लिए फॉर्म भरने की इनकी लाचारी ने कई लोगों को नये रोजगार दे दिए। लेकिन इन बेचारे भविष्य के मास्टर साहबों की रोजगार की समस्या जस-की-तस बनी रही। जो अभ्यर्थी सरकारी शिक्षक बनकर एक अच्छी जिंदगी जीने के ख्वाब देख रहे थे उन बेचारों के दिन पटना के आर. ब्लॉक के गेट पर धरना-प्रदर्शन करने में और रात नीतीश जी के सिपाहियों से मार खाने में बीत रही थीं। कईयों की शादियां टूट गईं, कई लोगों के घर टूट गए और जो बचे उनकी उम्मीदें टूट गईं।
ऐसे टूटे लोगों के मन को शिक्षा विभाग की इस घोषणा से कुछ आस बंधी है, मन के रिसते घावों को कुछ राहत मिली है। लग रहा है संघर्ष ने एक नई राह खोली है जो उनकी मेहनत का फल देने जा रही है। हालांकि, ये भी सच है कि आखिरी मौका होने की वजह से इस नियुक्ति प्रक्रिया में शातिर लोगों द्वारा एक बार फिर वो सारे हथकंडे आजमाये जायेंगे जिसकी चर्चा शिक्षा विभाग के गलियारों में गूंजती रही है। ऐसे में सरकार के लिए ये बड़ी चुनौती होगी कि वो इस आखिरी मौके का इस्तेमाल कैसे करती है। क्योंकि सवाल शिक्षा के स्तर, अभ्यर्थियों की मेहनत और कार्यप्रणाली की पारदर्शिता सबसे जुड़ा हुआ है। सबकी निगाहें इस ओर लगी हुई हैं और हर कोई नतीजे का इंतजार बेसब्री से कर रहा है। क्योंकि आनेवाला समय इसी के आधार पर राज्य के भविष्य को एक बुलंद आधार देगा।
‘बोल बिहार’ के लिए प्रीति सिंह