दो साल पूरे करने जा रही मोदी सरकार के कामकाज का एक नया सर्वे आया है। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज द्वारा कराए गए इस सर्वे में 49% लोगों ने कहा कि अच्छे दिन नहीं आए और 43% लोगों का मानना है कि सरकार की योजनाएं गरीबों तक नहीं पहुँच पा रहीं। बावजूद इसके 62% लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से खुश हैं और 70% लोग उन्हें फिर से प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं। बता दें कि इस सर्वे के लिए 15 राज्यों के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में चार हजार लोगों की राय ली गई थी।
सीएमएस के सर्वे में 64% लोगों ने माना कि वैश्विक स्तर पर भारत अपनी बात मजबूती से सामने रख रहा है। इस सर्वे में एक अन्य राय भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मिली जो बड़ी महत्वपूर्ण है। सर्वे के अनुसार 44% लोगों का मानना है कि मोदी सरकार में भ्रष्टाचार कम हुआ है जबकि 56% लोग मानते हैं कि सरकारी सेवाओं में भ्रष्टाचार जारी है।
सरकार की उपलब्धियों के बारे में पूछे जाने पर 36% लोगों ने जनधन योजना, 32% लोगों ने स्वच्छ भारत मिशन और 23% लोगों ने एफडीआई की बात की। वहीं सरकार की नाकामियों की बात आने पर 32% लोगों ने महंगाई का, 29% लोगों ने रोजगार का और 26% लोगों ने कालेधन का नाम लिया।
मोदी सरकार के मंत्रियों में लोगों ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के काम को सर्वश्रेष्ठ माना। सर्वे में सुषमा के बाद क्रमश: गृहमंत्री राजनाथ सिंह, रेलमंत्री सुरेश प्रभु, रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर और वित्तमंत्री अरुण जेटली लोकप्रिय मंत्रियों के तौर पर उभरे। हालांकि मंत्रालयों के कामकाज के आकलन में रेल मंत्रालय के काम को लोगों ने सर्वश्रेष्ठ माना। इसके बाद वित्त और विदेश मंत्रालय के काम से लोग संतुष्ट दिखे। लो परफॉर्मर मंत्रियों की बात करें तो सर्वे में रामविलास पासवान सबसे ऊपर रहे। उनके बाद लोगों ने क्रमश: बंडारू दत्तात्रेय, राधा मोहन सिंह, जेपी नड्डा और प्रकाश जावड़ेकर का नाम लिया।
अगर एक पंक्ति में कहना हो तो कह सकते हैं कि दो साल पहले इस सरकार ने अपने लिए जो लक्ष्य तय किए थे इस सर्वे का परिणाम उस दिशा में तो जरूर है लेकिन उससे काफी दूर है। 49% लोगों का कहना कि अच्छे दिन नहीं आए, 43% लोगों का मानना कि सरकार की योजनाएं गरीबों तक नहीं पहुँच पा रहीं और 56% लोगों का सरकारी सेवाओं में भ्रष्टाचार की बात करना हमें सोचने को बाध्य करता है।
पर हमें ये भी देखना होगा कि किसी भी सरकार के पास अलादीन के चिराग जैसी कोई चीज नहीं होती। उपलब्धियों का आँकड़ा सौ में सौ हो ये अपेक्षा ही अव्यावहारिक होगी। हाँ, उपलब्धियों का प्रतिशत सौ के जितने करीब हो और नाकामियां शून्य के जितने पास, ‘रिपोर्ट कार्ड’ उतना ही बेहतर कहा जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी को ये देखना होगा कि इस सर्वे से उनसे खुश 62% और उन्हें दुबारा प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाह रहे 70% लोगों को निकाल दें तो इस ‘रिपोर्ट कार्ड’ का स्तर क्या रह जाएगा..? वो चाहें तो भी ये नहीं भूल सकते कि ‘कप्तान’ के ‘आभामंडल’ से विरोधी टीम पर मनोवैज्ञानिक दवाब तो पड़ सकता है पर ‘मैच’ जीतने के लिए खेलना पूरी टीम को होता है।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप