बिहार की राजधानी पटना स्थित अगम कुआं। माना जाता है कि ऐतिहासिक, पुरातात्विक और धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण इस कुएं की खुदाई सम्राट अशोक के काल 273-232 ईस्वी पूर्व में की गई थी। पुरातत्व विभाग ने कई बार इस कुएं की गहराई नापने की कोशिश की और अंतत: इसकी गहराई 105 फीट बताई। जिस जमाने में महज 20 फीट पर पानी निकल आता हो उस जमाने में 105 फीट को पाताल से जुड़ा हुआ यानि ‘अगम’ ही माना जाएगा। स्वाभाविक था कि इसका नाम ‘अगम कुआं’ पड़ा।
इसकी खोज साल 1902-03 में ब्रिटिश खोजकर्ता लौरेंस वाडेल ने की थी। वाडेल ने लिखा है कि 750 साल पहले जब कभी कोई मुस्लिम पदाधिकारी पटना में प्रवेश करता था तो सबसे पहले वो सोने-चांदी के सिक्के इस कुएं में डालता था। देखा जाय तो ऐसा आस्थावश या भयवश किया जा सकता है, पर दोनों ही स्थितियों में उस समय भी इसकी प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा असंदिग्ध हो जाती है। ऐसा भी कहा जाता है कि जब कोई स्थानीय चोर-डकैत अपने काम में सफल होते थे तो इस कुएं में कुछ द्रव्य डाल देते थे। इससे भी ऊपर कही बात की ही पुष्टि होती है।
माना जाता है कि सम्राट अशोक ने अपने निन्यानवे भाईयों की हत्या कर उनकी लाशें इस कुएं में डलवाईं थीं। सम्राट अशोक के समय आए चीनी यात्रियों ने भी अपने संस्मरणों में इस कुएं का उल्लेख ऐसी जगह के रुप में किया है जहाँ सम्राट अशोक अपने विरोधियों को मरवा कर उनकी लाशें डलवाते थे। ऐसा भी कहते हैं कि इस कुएं के अंदर नौ श्रृंखलाबद्ध कुएं, उसके बाद कई छोटे-छोटे कुएं और अंत में एक ‘खजानागृह’ है जहां सम्राट अशोक अपने खजाने को सुरक्षित रखते थे। कहा ये भी जाता है कि यह ‘खजानागृह’ पास ही स्थित सम्राट अशोक के साम्राज्य-स्थल कुम्हरार से जुड़ा हुआ था, जहाँ से सुरंग के द्वारा खजाना यहाँ रखा जाता था और वो खजाना आज भी इस कुएं के अंदर पड़ा हुआ है।
इस कुएं की खासियत है कि भले ही कितना भयंकर सूखा क्यो ना पड़े यह कुआं सूखता नहीं। दूसरी तरफ बाढ़ ही क्यों ना जाए इस कुएं के जलस्तर में कोई खास वृद्धि नहीं होती। इस कुएं का जलस्तर गर्मियों में अपने सामान्य जलस्तर से मात्र 1-1.5 फीट नीचे जाता है और बारिश में 1-1.5 तक ही ऊपर आता है। एक और खास बात ये कि इस कुएं के पानी का रंग बदलता रहता है।
इस कुएं के नहीं सूखने के पीछे मान्यता है कि इसका जलस्रोत एक साथ पवित्र नदी गंगा और समुद्र गंगा सागर दोनों से जुड़ा हुआ है। गंगा नदी को लेकर लोगों का कहना है कि पहले गंगा इस कुएं के किनारे से बहती थी और इस तरह कुएं का जुड़ाव गंगा नदी से रहा है। समुद्र से जुड़ा होने के पीछे यह तर्क है कि एक बार एक अंग्रेज की छड़ी पश्चिम बंगाल स्थित गंगा सागर में गिर गई थी जो बहते-बहते इस कुएं में आ गई। आज भी वो छड़ी कोलकाता के एक म्यूजियम में सुरक्षित रखी हुई है।
परिसर में स्थित प्रसिद्ध शीतला मंदिर होने से इस कुएं की महत्ता और भी बढ़ गई है। माता शीतला की पूजा-अर्चना भी इसी कुएं के जल से संपन्न होती है। स्थानीय लोगों का ये भी मानना है कि इस कुएं के पानी से कुष्ठ रोग, चेचक जैसी कई बीमारियों से राहत मिलती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस कुएं के जल से स्नान करने से संतानप्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है। इस तरह लोगों की आस्था कई कोणों से जुड़ी हुई है इस कुएं से।
समृद्ध इतिहास को अपने में समेटे इस कुएं की हालत वर्तमान में बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। कुएं के रखरखाव में उपेक्षा साफ झलकती है। साफ-सफाई का भी अभाव दिखता है। अगर सरकार अपने इतिहास को समृद्ध और संरक्षित रखना चाहती है तो उसे इस कुएं की ओर भी ध्यान देना होगा। वरना एक दिन ये कुआं कहानियों का हिस्सा भर बनकर रह जायेगा।
‘बोल बिहार’ के लिए प्रीति सिंह